Devshayani Ekadashi / Padma Ekadashi / आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी कथा

Devshayani Ekadashi / Padma Ekadashi / आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी कथा

आषाढ़ शुक्लपक्ष एकादशी कथा

नमस्कार दोस्तों ,
                    मैं नन्दकिशोर आज आपके लिए बहुत सुंदर  अतिप्राचीन कथा लेकर आया हूँ जो भगवान श्रीराम के पूर्वज चक्रवर्ती सम्राट मान्धाता से संबंधित है। जिसका वर्णन चक्रधारी भगवान श्रीकृष्ण  ने महाराज युधिष्ठिर से किया है और जिस कथा को ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा है। यह कथा ब्रह्मवैवर्तपुराण से लिया गया है तो आइये हम सभी कथा के तरफ चलते हैं ....

Devashayani Ekadashi # Padma Ekadashi ! आषाढ़ शुक्लपक्ष एकादशी कथा

महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण पूछा - 

आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी का क्या नाम है , उसका देवता कौन है और विधि क्या है ? ये मुझसे कहिए।।

श्रीकृष्ण भगवान बोले --
हे महीपाल ! जिस कथा को ब्रह्माजी ने महात्मा नारदजी से कहा है , उस आश्चर्य कराने वाली कथा को मैं तुमसे कहता हूँ। 

ब्रह्माजी नारदजी से बोले - 
हे विवादप्रिय मुनिश्रेष्ठ ! तुम वैष्णव हो , तुमने बहुत सुंदर प्रश्न किया है । जगत में एकादशी से पवित्र और कोई पर्व नहीं है , सब पापों को नष्ट करने के लिए यत्नपूर्वक इसको करना चाहिए । एकादशी सभी मनोरथों को पूर्ण करता है।  

इस एकादशी का नाम पद्मा है। हृषिकेश भगवान की प्रसन्नता के लिए इस उत्तम व्रत को करना चाहिए । इस कथा को सुनने से बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं। 


सूर्यवंश में  सत्यवादी , प्रतापी  मान्धाता नाम का चक्रवर्ती राजा था । वह राजा धर्म से अपने पुत्र की तरह अपने प्रजा का पालन करता था । उसके राज्य में अकाल , रोग और मानसिक चिंता नहीं रहती थी । उसकी प्रजा आतंक रहित और धन - धान्य से पूर्ण थी । राजा के खजाने में अन्याय से पैदा किया हुआ धन नहीं था । उसे राज्य करते हुए बहुत साल बीतने के पश्चात फिर कभी पापों के फल उदय हुए ।


तीन वर्षों तक उसके राज्य में वर्षा नहीं हुई , इससे उसकी प्रजा भूख - प्यास  से पीड़ित होकर व्याकुल हो गई। अन्न के अभाव से पीड़ित होने के कारण उसके देश में स्वहा , स्वधा और वेद पाठ बन्द हो गया  फिर प्रजा आकर राजा से बोले - 
हे राजन् ! प्रजा के हित के लिए हमारे वचनों को सुनिए ।

भगवान का नाम नारायण क्यों पड़ा ?

बुद्धिमानों ने पुराणों में जल को नार कहा है । उस जल में भगवान् का अयन - स्थान है , इससे भगवान का नाम नारायण है ।।  मेघरूपी विष्णु भगवान् सब में व्याप्त है । वे ही वर्षा करते हैं । वर्षा से अन्न होता है । अन्न से प्रजा होती है । 



हे नृपते ! उस अन्न के न होने होने से प्रजा नष्ट हो रही है । हे नृपश्रेष्ठ ! ऐसा यत्न कीजिए जिससे कल्याण हो । राजा ने कहा - आपने सत्य कहा है ।  अन्न ईश्वर का रूप है । अन्न में सब निवास करते हैं । अन्न से प्राणी पैदा होते हैं , अन्न से ही संसार वर्तमान है ।ऐसा पुराणों में भी कहा गया है । 

Devshayani  Ekadashi / Padma Ekadashi / आषाढ़ शुक्लपक्ष एकादशी कथा

राजा के अधर्म से प्रजा को दुःख मिलता है । मैंने बुद्धि से विचार करते हुए अपना कोई दोष नहीं देखा । तथापि प्रजाहित के लिए मैं यत्न करूँगा । ऐसा विचार करके राजा ने कुछ सेना लेकर ब्रह्माजी को प्रणाम करके गहन वन में चला गया । तपस्वी मुनिश्वरों के आश्रम में विचरने लगा । वन में राजा ने ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि को देखा , जिनके तेज से दिशाओं में प्रकाश हो रहा था । वे दूसरे ब्रह्मा के समान दिखाई पड़ रहे थे  । उनको देखकर जितेन्द्रिय राजा प्रसन्न हुआ और सवारी से उतरकर दण्डवत् किये । ऋषि ने स्वस्तिवाचन किया और आशीर्वाद देकर राजा के राज्य कः सातों अंगों  की कुशल पूछी। राजा ने कुशल बताकर ऋषि को कुशल पूछी  फिर मुनि ने राजा के आने का कारण पूछा । 

राजा ने कहा - भगवन् ! मैंने धर्म से पृथ्वी का पालन किया है फिर भी हमारे राज्य में वर्षा नहीं हो रही है इसका कारण मैं नहीं जानता । कृपया , दया कर संदेह दूर कीजिए ।


ऋषि बोले -- हे राजन् ! यह सत् युग सब युगों में उत्तम है । इस युग में मनुष्य ब्रह्मज्ञानी है । इसमें धर्म के चारों चरण वर्तमान हैं । इस युग में ब्राह्मणों के सिवा कोई तपस्या नहीं करते । हे राजन् ! तुम्हारे राज्य  में शूद्र तपस्या कर रहा है , उसके अनुचित  कार्य से वर्षा नहीं हो रही है । उसको मारने का उपाय करो जिससे दोष शान्त हो ।राजा बोला - बिना अपराध के तप करने वाले को मैं नहीं मार सकता इसलिए दुःख दूर करने के लिए धर्म का उपदेश दीजिए । 

ऋषि बोले -- ऐसा है तो देवशयनी एकादशी का व्रत कीजिए । आषाढ़ के शुक्लपक्ष में पद्मा नामकी प्रसिद्ध एकादशी होती है। उसके व्रत के प्रभाव से निश्चय सुन्दर वर्षा होगी । यह सब सिद्धियों को देने वाली और सब उपद्रवों को नष्ट करने वाली है।  हे नृप ! तुम प्रजा व परिवार सहित इस व्रत को करो ।राजा अपने महल में जाकर इस व्रत को किया । सब प्रजा चारों वर्णों सहित सभी ने इस व्रत को किया ।

पद्मा एकादशी व्रत से लाभ

हे राजन् !  इस व्रत के प्रभाव से राज्य में अच्छी वर्षा हुई । पृथ्वी जल से भर गई और अन्न से परिपूर्ण हो गई । भगवान् की कृपा से सभी सुखी हुए , इस कारण इस व्रत को करना चाहिए । यह मनुष्यों को सुख और मोक्ष देनेवाली है । इसके पढ़ने और सुनने से सभी पाप छूट जाते हैं । 

हे राजन् ! इस दिन भगवान् विष्णु चार महीने तक सोने चले जाते हैं जिसके कारण इस एकादशी का नाम देवशयनी  भी है ।

हे राजशार्दूल ! भगवान के प्रसन्न करने के लिए मोक्ष की इच्छा रखने वाले को देवशयनी का व्रत अवश्य करना चाहिए । 
चातुर्मास्य व्रत का आरंभ भी इसी में किया जाता है।

भगवान विष्णु का द्वादश अक्षर मंत्र --
          
               ।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।।

      
        
            ।।एकादशी माहात्म्य की जय।।

            ।। श्री ब्रह्मवैवर्तपुराण की जय ।।

            ।।   जय लक्ष्मीनारायण की ।।

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            जय श्री राम
              
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