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Showing posts from June, 2020

सेतुबंध रामेश्वरम का माहात्म्य

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सेतुबंध रामेश्वरम् का माहात्म्य सेतुबंध रामेश्वरम् दक्षिण समुद्र तट पर तमिलनाडु के रामनाथपुरम में स्थित है । यहाँ भगवान शिव का शिवलिंग स्थित है। त्रेतायुग में जब भगवान श्री राम   जब सीता जी को लंकेश रावण से वापस लाने के लिए जा रहे थे तभी समुद्र पर सेतु बनाते समय उन्होंने यहीं शिवलिंग की स्थापना किये । भगवान श्री राम द्वारा स्थापित किए जाने के कारण रामेश्वरम् कहलाये अर्थात् जो श्रीराम का ईश्वर हो --वही रामेश्वरम् है।  भगवान श्री राम ने श्री रामचरितमानस मानस में कहा है --   ' लिंग थापि विधिवत करि पूजा ।  शिव समान मोहि प्रिय नहीं दूजा।।' उन्होंने अपने श्री मुख से कहा है --  "  जो व्यक्ति रामेश्वरम् का दर्शन करेंगे , उन्हें सायुज्य मुक्ति प्राप्त होगी।"   सेतुबंध रामेश्वरम् का माहात्म्य नमस्कार बंधुओ ! मैं नन्द किशोर राजपूत आज पावन पुनित  सेतुबंध रामेश्वरम् की महिमा  वर्णन करने जा रहा हूँ । जिसके पढ़ने से पापों के समूह नष्ट हो जाते हैं। यह स्थान भारत के अंतिम छोर पर स्थित है। हमारे धर्मशास्त्र में गंधमादन पर्वत के नाम से वर्णित है ,यह द्वीप लगभग

जगन्नाथ पुरी की महिमा

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जगन्नाथ पुरी की महिमा नमस्कार बंधुओ, मैं नन्द किशोर राजपूत आज आपको कलिंग लेकर चलता हूँ , जो उत्कल , उड़ीसा आदि के भी नामों से जाना जाता है । मैं ' जगन्नाथ पुरी की महिमा '  के बारे में वर्णन करने जा रहा हूँ। यह पावन पुरी आध्यात्मिक के साथ - साथ ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टिकोण से भी अति महत्वपूर्ण है । यह पुरी जलधि तीर पर बसा हुआ है।  अशोक का शस्त्र त्याग व धर्म परिवर्तन -- उड़ीसा का प्राचीन नाम कलिंग है , जहाँ के शासक को पराजित करने के लिए महाराज अशोक को चढ़ाई करनी पड़ी थी । उनको कलिंग से चार वर्षों तक लगातार युद्ध करना पड़ा था । सेनानायक और महाराज की लड़ाई में मृत्यु हो जाने के बाद उनकी पुत्री पद्मा स्वयं युवतियों की सेना का नेतृत्व करती हुई अशोक के सामने आयी। महाराज अशोक ने स्त्री पर हथियार चलाना धर्मोचित् नहीं समझा और अपने अस्त्र - शस्त्र का त्याग करके बौद्ध धर्म  को स्वीकार कर आजीवन अहिंसा का व्रत ले लिया । जगन्नाथ पुरी धाम भारत के चार धामों में जगन्नाथपुरी धाम का विशेष महत्व है । यहाँ के भव्य मन्दिर में भगवान जगन्नाथ , सुभद्रा व बलराम की मूर्तियाँ दर्शनीय हैं ।  

इन्द्रपर ब्रह्महत्या का आक्रमण

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इन्द्रपर ब्रह्महत्या का आक्रमण नमस्कार बंधुओ, मैं नन्द किशोर सिंह आज आपके लिए अतिप्राचीन ऐतिहासिक कथा ' इन्द्रपर ब्रह्महत्या का आक्रमण '  का वर्णन करने जा रहा हूँ। जो श्रीवेदव्यास जी  द्वारा रचित है और जो श्रीशुकदेवजी ने राजा परीक्षित  से कहा है।यह मनोरम कथा श्रीमद्भागवत् महापुराण षष्ठ स्कन्ध अध्याय - 13  से लिया गया है । इसमें पूरा तेरहवॉं अध्याय श्लोक संख्या 1 से 23 तक वर्णन है। इन्द्रपर ब्रह्महत्या का आक्रमण श्री शुकदेवजी कहते हैं --  महादानी परीक्षित ! वृत्रासुर की मृत्यु से इन्द्र के अतिरिक्त तीनों लोक और लोकपाल उस समय परम प्रसन्न हो गये। उनका भय , उनकी चिंता समाप्त हो गयी । युद्ध समाप्त होने पर देवता , ऋषि , पितर , भूत , दैत्य और देवताओं अनुचर गंधर्व आदि इन्द्र से बिना पूछे ही अपने - अपने लोक को चले गये। इसके पश्चात् ब्रह्मा, शंकर और इन्द्र भी चले गये । राजा परीक्षित ने पूछा ---   भगवान् ! मैं देवराज इन्द्र की अप्रसन्नता कारण सुनना चाहता हूँ । जब वृत्रासुर के वध से सभी देवता सुखी हुए तो इन्द्र के दुःखी होने के क्या कारण थे । श्री शुकदेवजी ने कहा --            

करणनिरपेक्ष साधन क्या है ?

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करणनिरपेक्ष साधन क्या है ? नमस्कार बंधुओ ,              मैं नन्द किशोर सिंह आज एक महत्वपूर्ण व रोचक विषय लेकर आया हूँ , जिसमें    'करणनिरपेक्ष साधन '   के बारे में चर्चा में चर्चा करेंगे। ज्यों  तिरिया  पीहर  रहै ,   सुरति  रहै  पिय  माहिं । ऐसे  जन   जगमें     रहै ,  हरि   को    भूलै   नाहिं।।           कन्या    मायके में कुछ दिन रह जाती है  तो माँ से कहती है -- ' हे माँ ! मुझे भाई या किसी परिवारजन के साथ  अपने घर पहुँचवा दो क्योंकि मेरे पति को गृहकार्य में परेशानी होती होगी ।'  वह रहती है मायके में लेकिन  चिंता घर की बनी रहती है क्योंकि उसे मालूम है कि मैं मायके की नहीं बल्कि ससुराल की हूँ , वही मेरा वास्तविक घर है ।   इसी तरह भगवान का भक्त इस संसार में रहते हुए भी भगवान् को नहीं भूलता , वह समझता है कि यह जगत् मेरा नहीं है , मेरे तो भगवान हैं। यह करणनिरपेक्ष साधन है।     अगर किसी से प्रश्न किया जाय -- ' तुम कौन हो ?'  तो प्रत्येक व्यक्ति यही कहेगा - '  मैं हूँ '  । ' मैं हूँ ' -- इसमें कोई लेकिन परंतु नहीं है , यह निर्विवाद है ।   &

सत्संग कैसे सुनें | Satsang Kaise sune ?

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सत्संग कैसे सुनें | Satsang Kaise sune ? नमस्कार बंधुओ !            मैं नन्द किशोर सिंह आज आपके लिए महत्वपूर्ण आध्यात्मिक विषय लेकर आया हूँ , जिसका शीर्षक है ---- सत्संग कैसे सुनें | Satsang Kaise sune         सत्संग दो शब्दों के संधि योग से बना है --  सत् + संग अर्थात् जिसका संग अच्छे लोगों से हो वह सत्संगति है। सत्संग सुनना भी एक विद्या है यदि उस विद्या को काम में लाया जाय तो सत्संग से बहुत बड़ा लाभ उठाया जा सकता है।                पढ़ाई करने से उतना बड़ा विद्वान कोई नहीं बन सकता , जितना सत्संग से बनता है। ग्रंथ पढ़ने  से तो एक विषय का ज्ञान होता है , परंतु सत्संग से परमार्थिक और व्यावहारिक   सब तरह का ज्ञान है। सत्संग करने वाला कर्मयोग , भक्तियोग , ज्ञानयोग , लययोग , राजयोग , अष्टांगयोग , हठयोग आदि अनेक विषयों की जानकारी प्राप्त कर लेता है । इन्द्र पर ब्रह्महत्या का अपराध जो प्रत्येक काम मन लगाकर करता है , वही व्यक्ति मन लगाकर सत्संग सुन सकता है । इसलिए जो भी काम करें , मन लगाकर करें। विद्याध्ययन करें , भोजन बनायें या भोजन करें , पूजा , जप-तप यानी जो भी काम करें मन लगाकर