करणनिरपेक्ष साधन क्या है ?
करणनिरपेक्ष साधन क्या है ? नमस्कार बंधुओ , मैं नन्द किशोर सिंह आज एक महत्वपूर्ण व रोचक विषय लेकर आया हूँ , जिसमें 'करणनिरपेक्ष साधन ' के बारे में चर्चा में चर्चा करेंगे। ज्यों तिरिया पीहर रहै , सुरति रहै पिय माहिं । ऐसे जन जगमें रहै , हरि को भूलै नाहिं।। कन्या मायके में कुछ दिन रह जाती है तो माँ से कहती है -- ' हे माँ ! मुझे भाई या किसी परिवारजन के साथ अपने घर पहुँचवा दो क्योंकि मेरे पति को गृहकार्य में परेशानी होती होगी ।' वह रहती है मायके में लेकिन चिंता घर की बनी रहती है क्योंकि उसे मालूम है कि मैं मायके की नहीं बल्कि ससुराल की हूँ , वही मेरा वास्तविक घर है । इसी तरह भगवान का भक्त इस संसार में रहते हुए भी भगवान् को नहीं भूलता , वह समझता है कि यह जगत् मेरा नहीं है , मेरे तो भगवान हैं। यह करणनिरपेक्ष साधन है। ...