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इन्द्रपर ब्रह्महत्या का आक्रमण

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इन्द्रपर ब्रह्महत्या का आक्रमण नमस्कार बंधुओ, मैं नन्द किशोर सिंह आज आपके लिए अतिप्राचीन ऐतिहासिक कथा ' इन्द्रपर ब्रह्महत्या का आक्रमण '  का वर्णन करने जा रहा हूँ। जो श्रीवेदव्यास जी  द्वारा रचित है और जो श्रीशुकदेवजी ने राजा परीक्षित  से कहा है।यह मनोरम कथा श्रीमद्भागवत् महापुराण षष्ठ स्कन्ध अध्याय - 13  से लिया गया है । इसमें पूरा तेरहवॉं अध्याय श्लोक संख्या 1 से 23 तक वर्णन है। इन्द्रपर ब्रह्महत्या का आक्रमण श्री शुकदेवजी कहते हैं --  महादानी परीक्षित ! वृत्रासुर की मृत्यु से इन्द्र के अतिरिक्त तीनों लोक और लोकपाल उस समय परम प्रसन्न हो गये। उनका भय , उनकी चिंता समाप्त हो गयी । युद्ध समाप्त होने पर देवता , ऋषि , पितर , भूत , दैत्य और देवताओं अनुचर गंधर्व आदि इन्द्र से बिना पूछे ही अपने - अपने लोक को चले गये। इसके पश्चात् ब्रह्मा, शंकर और इन्द्र भी चले गये । राजा परीक्षित ने पूछा ---   भगवान् ! मैं देवराज इन्द्र की अप्रसन्नता कारण सुनना चाहता हूँ । जब वृत्रासुर के वध से सभी देवता सुखी हुए तो इन्द्र के दुःखी होने के क्या कारण थे । श्री शुकदेवजी ने कहा --