जगन्नाथ पुरी की महिमा
जगन्नाथ पुरी की महिमा
नमस्कार बंधुओ,
मैं नन्द किशोर राजपूत आज आपको कलिंग लेकर चलता हूँ , जो उत्कल , उड़ीसा आदि के भी नामों से जाना जाता है । मैं ' जगन्नाथ पुरी की महिमा ' के बारे में वर्णन करने जा रहा हूँ। यह पावन पुरी आध्यात्मिक के साथ - साथ ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टिकोण से भी अति महत्वपूर्ण है । यह पुरी जलधि तीर पर बसा हुआ है।
अशोक का शस्त्र त्याग व धर्म परिवर्तन --
उड़ीसा का प्राचीन नाम कलिंग है , जहाँ के शासक को पराजित करने के लिए महाराज अशोक को चढ़ाई करनी पड़ी थी । उनको कलिंग से चार वर्षों तक लगातार युद्ध करना पड़ा था । सेनानायक और महाराज की लड़ाई में मृत्यु हो जाने के बाद उनकी पुत्री पद्मा स्वयं युवतियों की सेना का नेतृत्व करती हुई अशोक के सामने आयी। महाराज अशोक ने स्त्री पर हथियार चलाना धर्मोचित् नहीं समझा और अपने अस्त्र - शस्त्र का त्याग करके बौद्ध धर्म को स्वीकार कर आजीवन अहिंसा का व्रत ले लिया ।
जगन्नाथ पुरी धाम
भारत के चार धामों में जगन्नाथपुरी धाम का विशेष महत्व है । यहाँ के भव्य मन्दिर में भगवान जगन्नाथ , सुभद्रा व बलराम की मूर्तियाँ दर्शनीय हैं । मंदिर के कई भाग हैं , जिनमें भोग मंडप, जग मोहन (नृत्यशाला), मुखशाला (दर्शनकक्ष) तथा अंत में मुख्य मंदिर है , जिसके ऊपर नुकिली मीनार बनी हुई है।
मंदिर में प्रातः सात बजे मंगला के दर्शन होते हैं और शाम में सात बजे आरती होती है। यहाँ के विशेष आकर्षण रथयात्रा है इस दिन लाखों श्रद्धालू इस उत्सव में भाग लेते हैं।
जगन्नाथपुरी में यात्रियों के स्नान के लिए कुछ पवित्र स्थान हैं -- महोदधि , रोहिणी कुण्ड , इन्द्र - प्रद्युम्न सरोवर , मार्कण्डेय सरोवर , चन्दन तालाब , श्वेत गंगा , श्री लोकनाथ सरोवर तथा चक्र तीर्थ आदि।
एक बार परम पुनित नैमिषारण्य क्षेत्र में अट्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूत जी से पूछा -- हे सूतजी ! पृथ्वी पर ऐसा कौन- सा तीर्थ है जहाँ के दर्शन , स्नान से मनुष्य भवसागर से पार हो जाए।
ऋषियों की वाणी सुनकर श्री सूतजी बोले -- हे शौनक गण ! भवसागर से पार करने वाला और संसार में अनेक सुख देने वाला श्री पुरुषोत्तम क्षेत्र है। उसके माहात्म्य को ध्यान से सुनिए ।
उड़ीसा में नीलाचल पर्वत पर परम पावन श्री पुरुषोत्तम क्षेत्र है। यहाँ पर भगवान श्री जगन्नाथ जी के नाम से निवास करते हैं । सृष्टि के आरंभ में ब्रह्माजी को भगवान विष्णु ने नीलगिरि पर्वत पर दर्शन दिये और बोले -- हे चतुरानन ! समुद्र के उत्तर और महानदी के दक्षिण का प्रदेश अति पवित्र है जो मनुष्य यहाँ निवास करता है उसे सभी तीर्थों का फल प्राप्त होता है।मैं सदा यहाँ निवास करता हूँ । इस स्थान का प्रलय में भी नाश नहीं होता है।नीलगिरि पर एक वट वृक्ष है उसके मूल से पश्चिम की ओर रोहिणी कुण्ड नामक सरोवर है उसके तट में मैं स्थित रहता हूँ ,जो मनुष्य उसमें स्नान कर मेरा दर्शन करेंगे उसे मुक्ति मिल जाएगी।
वहाँ जाकर जो बलभद्र, सुभद्रा के साथ श्री जगन्नाथजी का दर्शन जो मनुष्य करता है वह सब पापों से छूट जाता है और जो रोहिणी कुण्ड में स्नान करता है वह उत्तम गति को प्राप्त करता है।
एक बार एक कौवा रोहिणी कुण्ड में जल पीकर , शरीर को त्यागने पर चार भुजा से युक्त होकर दिव्य शरीर को धारण कर स्वर्ग को चला गया ।
चंदन तालाब में जो कोई स्नान करके तर्पण करता है उनके पितरों को उत्तम गति प्राप्त होती है। पहले यहाँ नीलमाधव भगवान का निवास था ।
एक बार माधवाधिपति राजा इन्द्रप्रद्युम्न भगवान के दर्शन करने यहाँ आये और उसी समय नीलमाधव भगवान अंतर्ध्यान हो गये । तब भगवान के दर्शन के लिए राजा ने कठोर तपस्या किये। तब भगवान ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा -- ' मैं स्वयं काष्ठ मूर्ति स्वरूप यहाँ प्रकट होऊँगा।' तब राजा ने अति प्रसन्न होकर बहुत बड़ा मंदिर बनवाया ।
एक दिन समुद्र में बह कर एक बहुत बड़ा काष्ठ (महादारू) आया। राजा ने उसे निकलवा कर भगवान विष्णु का मूर्ति बनवाने का निश्चय किया। उसी समय वृद्ध बढ़ई के रूप में विश्वकर्मा भगवान् आये और कहा -- जबतक मैं मूर्ति बनाऊँगा तबतक कोई भी उस कमरे को ना खोले । वृद्ध लकड़ी लेकर गुंडीचा (एक स्थान का नाम) मंदिर के स्थान पर भवन में बंद हो गये।
मूर्ति बनाते हुए कई दिन बीत गये तब राजा की पत्नी ने राजा से कहा-- - भूखे - प्यासे कहीं वृद्ध मर न गया हो , भवन खोलकर देखिए। राजा ने भवन जैसे ही खुलवाये वृद्ध गायब हो गये।मूर्ति अधूरा ही था , राजा चिंतित हो गये। उसी समय आकाशवाणी हुई -- " तुम चिंता नहीं करो , इसी रूप में रहने की मेरी इच्छा है। मूर्तियों पर पवित्र द्रव्य चढ़ाकर उन्हें प्रतिष्ठित कर दो " इस आकाशवाणी को सुनकर मूर्तियों का निर्माण गुंडिचा मंदिर के पास हुआ , इसलिए गुंडिचा मंदिर को ब्रह्मलोक या जनकपुर कहते हैं।
राजा ने मंदिर बनवाकर भगवान की स्थापना कर पूजा - अर्चना की , तभी से यह क्षेत्र पुरुषोत्तम क्षेत्र और भगवान श्री जगन्नाथ के नाम से विख्यात हो गया।
यहाँ पर इन्द्रद्युम्न सरोवर में स्नान कर जो भगवान का प्रसाद पाता है उसे कोटि गोदान का फल मिलता है ।
जो व्यक्ति भगवान का दर्शन करना चाहे वो इस प्रकार दर्शन करे ----
पहले सिंह दरवाजे से होकर मंदिर में प्रवेश करे , परिक्रमा में भोग मंडल , गणेशजी , वटवृक्ष , नृसिंह जी , रोहिणी कुण्ड , लक्ष्मी जी का दर्शन कर मंदिर से भीतर प्रवेश करे ।
वहाँ जगन्नाथजी , सुभद्रा जी , बलरामजी , सुदर्शनजी का दर्शन करे और यथाशक्ति भेंट चढ़ाये फिर लोकनाथ जी का दर्शन करे। इस रीति से जो भगवान का ध्यान करते हैं उनको साक्षात् दर्शन का फल मिलता है।
पुरी से नौ मील पर साक्षी गोपाल जी हैं । यहाँ श्रीकृष्ण - राधा जी के दर्शन पाने वाले की साक्षी देते हैं , यहाँ से आगे भुवनेश्वर महादेव जी हैं । वहाँ पर भुवनेश्वर जी के दर्शन और बिन्दुहृद ( बिन्दुसागर ) नाम का सरोवर है ।जिसमें स्नान करने से समस्त तीर्थों के स्नान का फल मिलता है।
पुरी के बीच में एक 20 फुट ऊँचा टीला है जिसे नीलगिरि कहते हैं । श्री जगन्नाथजी का मंदिर इसी टीले पर है जो अतिविशाल है । पुरी डेढ़ मील चौड़ी और 3 मील लंबी है।
द्वारका में एक बार सुभद्राजी ने नगर देखना चाहा तो श्रीकृष्ण जी और बलराम जी ने पृथक रथ में बैठाकर अपने रथों को मध्य में रखकर नगर दर्शन कराये । इसी घटना की याद करके रथ यात्रा निकलती है।
पुरी धाम के अन्य मंदिर
1. गुंडिचा मंदिर
2. कपाल मोचन
3. एमार मठ
4 गंभीरा मठ
5 सिद्ध बकुल
6 श्वेत केशव मंदिर
7 गोवर्धन पीठ
8 कबीर मठ
9 हरिदासजी की समाधि
10 तोटा गोपीनाथ
11 लोकनाथ
12 बेड़ी हनुमान
13 चक्रतीर्थ और चक्रनारायण
14 सोनार गौरांग
15 कानवत हनुमान
16 नानक मठ
बंधुओ !
ये जानकारी आपको कैसी लगी , जरूर बताइएगा।
धन्यवाद !
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