जब रानी ने पाँच सौ अंडों को जन्म दिया

जब रानी ने पाँच सौ अंडों को जन्म दिया


नमस्कार बंधुओ,
मैं नन्द किशोर सिंह आज आपके लिए एक ऐतिहासिक व मार्मिक कहानी लेकर आया हूँ जिसका शीर्षक है 
'जब रानी ने पाँच सौ अंडों को जन्म दिया'
जी हाँ , अब आपके मन में सवाल उठता होगा क्या औरत अंडों को जन्म दे सकती है ? तो कोई अचरज की बात नहीं है लेकिन ये बिल्कुल सत्य है।ये बात महात्मा बुद्ध के समय की है।



जब रानी ने पाँच सौ अंडों को जन्म दिया


                  उत्तर दिशा के तरफ एक पांचाल राज्य था। उस राज्य के राजा की पत्नी गर्भ से थी । समय होने पर उन्होंने बच्चे के स्थान पर पाँच सौ अंडों को जन्म  दिया। सेविकाओं की समझ में नहीं आया कि अब क्या करें ? 




इस बात से रानी को भी शर्म महसूस हुई और कहा - दासियो ! इस बात को गुप्त रखना , तुमलोग इन अंडों को एक टोकरी में डालकर नदी में बहा दो  और राजा को सूचना दे दो कि रानी को एक मांस का लोथड़ा हुआ था जिसे फेंक दिया गया। दासी ने रानी के कथनानुसार ही किया।



जिस समय अंडों की टोकरी नदी में बहा दिया जा रहा था उस समय नदी के तट पर सुदूरवर्ती राज्य का राजा नदी के तट पर था उसने सावधानीपूर्वक टोकरी को नदी से बाहर निकलवाया और अपने महल में लाकर अपने कक्ष में रखवा दिया। 

वह प्रतिदिन उन श्वेत अंडों को देखता रहता। एक दिन प्रातःकाल एक अंडा फूटा और उसमें से एक लड़का निकला । इसी प्रकार सभी अंडे से एक - एक लड़का निकला। 

राजा निःसंतान था , अतः राजा और रानी पुत्र को पाकर अतिप्रसन्न हुआ ।उन्होंने पाँच सौ राजकुमारों का लालन - पालन बहुत बढ़िया ढंग से किया। इस राजा का पांचाल नरेश से संबंध बढ़िया नहीं था क्योंकि उसने इस पर आक्रमण कर हरा दिया था जिसके फलस्वरूप भारी कर चुकाना पड़ता था ।


बड़ा होकर राजकुमारों ने जब इस बात को जाना तो कर देना बंद करवा दिया । जिसके परिणामस्वरूप उस राजा ने चढ़ाई कर दिया लेकिन राजकुमारों ने अपने शौर्य से उस राजा को परास्त कर दिया ।और उसके राज्य को भी जीत लिया।

पांचाल राजा किले में अपने प्रियजनों के साथ द्वार  के अंदर बंद हो गये । राजकुमारों ने अपनी सेना बाहर तैनात कर दी । धीरे -- धीरे किले का रसद - पानी समाप्त होती जा रही थी । चिंतित होकर राजा-रानी भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि हे भगवान ! इस समस्या का कोई शांतिपूर्ण हल निकालिये।




उन दिनों महात्मा बुद्ध उसी क्षेत्र में थे । वे उसी राज्य में ठहर गये। वे राजकुमारों से मिले और उन्हें बताया कि तुमने जिसे घेर रखा है वही तुम्हारा असली माता है।राजकुमार उलझन में पड़ गयेऔर यह बात अपने पिता को जाकर बताई ।



राजा ने इस बात की जानकारी के लिए किले से राजा - रानी को बुलवाये तो उन्हें लगा कि अब मेरी जिंदगी समाप्त होने वाली है । लेकिन जब राजा ने पाँच सौ अंडों वाली बात पूछा तो रानी बिलख उठी और स्वीकार किया कि लोक लज्जा के भय से उन अंडों को पानी में बहा दिया गया था ।


अब राजा को राजकुमारों के असली माता - पिता का रहस्य मालूम हो गया था जिससे वे निराश हो गये।  पांचाल नरेश ने राजा को व्याकुल देखकर कहा -- " आपने राजकुमारों का लालन - पालन किया है इसलिए जितना अधिकार इनपर मेरा है आपका भी उतना ही है ।
पहले के जैसा इन्हें अपने पास ही आप रहने दीजिए ।



       

                    अंत में महात्मा बुद्ध के परामर्श पर विचार किया गया कि आधे यानी 250 राजकुमारों को पांचाल नरेश के पास और आधे को उस राजा के पास रहने दिया जाए जिसने नदी से निकालकर पाला - पोसा है। 

इस प्रकार दोनों राजाओं की शत्रुता सदा के लिए समाप्त हो गई और दोनों राज्य उन्नति के मार्ग पर चलने लगे ।

   भाईयो, ये कहानी आपको कैसी लगी जरूर लिखेंगे।

धन्यवाद !

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