योगिनी एकादशी : व्रत करने से मिलती है पापों से मुक्ति #जानें पूजा विधि और महत्व / आषाढ़ कृष्णपक्ष की एकादशी कथा
योगिनी एकादशी : व्रत करने से मिलती है पापों से मुक्ति #जानें पूजा विधि और महत्व / आषाढ़ कृष्णपक्ष की एकादशी कथा
Ekadashi katha
योगिनी एकादशी : व्रत करने से मिलती है पापों से मुक्ति #जानें पूजा विधि और महत्व / आषाढ़ कृष्णपक्ष की एकादशी कथा
नमस्कार दोस्तों ,
मैं नन्दकिशोर सिंह आज आपके लिए अति महत्वपूर्ण अतिप्राचीन कथा लेकर आया हूँ जिसका इन्तजार आपको भी अरसों से था तो आइये चलें अनुपम कथा की ओर ......
आषाढ़ कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी
युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण जी से पूछा -- आषाढ़ Krishna Ekadashi का क्या नाम है ? हे मधुसूदन कृपा करके कहिए ।
श्रीकृष्ण भगवान बोले -- हे राजन् ! व्रतों में उत्तम व्रत मैं तुमसे कहूँगा उसे ध्यान से सुनो।
आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगिनी है जो सभी पापों को दूर कर भुक्ति और मुक्ति देती है।
हे नृपश्रेष्ठ ! यह एकादशी बड़े पापों का नाश करने वाली और संसार रूपी सागर में डूबे हुए मनुष्यों को पार लगाने वाली सनातनी है ।। हे नराधिप ! यह योगिनी त्रिलोकी में सारांश है ।
पुराणों में लिखी हुई पापनाशिनी कथा --
हेममाली की कथा --
अलकापुरी का राजा कुबेर शिवजी का पूजन किया करता था । उसका माली हेममाली नाम का यक्ष था । उसकी स्त्री सुन्दरी था । उसका नाम विशालाक्षी था। वह माली उसके स्नेह से युक्त होकर कामदेव के वशीभूत हो गया । वह मानसरोवर से फूल लाकर अपनी स्त्री के प्रेम में फँसकर घर में ही ठहर गया । फूल देने के लिए कुबेर के स्थान पर नहीं गया । कुबेर देव मन्दिर में शिव भगवान का पूजन कर रहा था।
योगिनी एकादशी : व्रत करने से मिलती है पापों से मुक्ति , जानें पूजा विधि और महत्व
हे राजन् ! दोपहर बाद भी वह पुष्प लेकर नहीं प्रस्तुत हुआ । हेममाली अपने घर में स्त्री के साथ रमण कर रहा था । विलम्ब के कारण कुपित होकर कुबेर बोला ।।
हे यक्षो ! दुष्ट हेममाली क्यों नहीं आया ? इसका क्या कारण है ? इसका निश्चय करो । इस प्रकार बारंबार कुबेर के कहने पर यक्ष बोले --
हे नृपश्रेष्ठ ! वह स्त्री का प्रेमी अपने घर अपनी इच्छा से स्त्री के साथ खेल कर रहा है। इस वचन को सुनकर कुबेर क्रोध में भर गया । शीघ्रताशीघ्र उसे बुलाया गया। देर हो जाने के कारण वह माली भी भय से व्याकुल होकर वहाँ आया । कुबेर को नमस्कार कर सामने खड़ा हो गया । उसको देखकर कुबेर के नेत्र लाल हो गये और कुपित होकर बोले ----
अरे पापी ! दुष्ट ! दुराचारी ! तूने देवता का अपराध किया है इसलिए तुम्हारे शरीर में श्वेत कुष्ट हो जाय , स्त्री से सदा वियोग बना रहे और इस स्थान से गिरकर नीच गति को प्राप्त हो जाती ।
कुबेर के इस प्रकार के कहने पर वह उसी समय वह अपने स्थान से गिरकर श्वेत कुष्ठ से पीड़ित होकर दुःखी हुआ। वह ऐसे भयंकर जंगल में गया जहाँ अन्न और जल नहीं मिलता था । उसे रात - दिन कभी चैन नहीं आता था , न नींद और न सुख । छाया में शीत और धूप में गर्मी से पीड़ित रहता था । परंतु शिवजी की कृपा से उसकी स्मरण शक्ति दूर नहीं हुई । पापनाशिनी युक्त होने पर भी पहले कर्म का स्मरण बना रहा।
शिव की महिमा
वह भ्रमण करता हुआ हिमालय पर चला गया। वहाँ मार्कण्डेय मुनिश्वर का दर्शन हुआ ।उनकी आयु ब्रह्माजी के सात दिन के बराबर है। उनका आश्रम ब्रह्माजी के सभा जैसी है। वह वहाँ पहुँचा और पाप के कारण दूर से ही प्रणाम किया। परोपकारी मार्कण्डेय मुनिश्वर ने उसको कुष्ठी देखकर उसे बुलाकर पूछा - --
योगिनी एकादशी : व्रत करने से मिलती है पापों से मुक्ति , जानें पूजा विधि और महत्व
तुम्हारे कुष्ठ कैसे हो गया ? तुमने कौन - सा बुरा काम किया है ? इस प्रकार मार्कण्डेय जी के पूछने पर उसने सारी कथा उनसे कहीं । कुछ छिपाया नहीं । अब कोई पुण्य उदय हो गया जिससे मैं आपके समीप आ गया और आपके दर्शन हुए ।
सज्जनों का चित्त स्वाभाविक परोपकारी होता है। इसलिए हे मुनिश्रेष्ठ ! मुझ पापी को उपदेश दीजिए। मार्कण्डेय ऋषि बोले -- तुमने मुझसे सत्य कहा है इसलिए शुभ फल देने वाले व्रत का मैं उपदेश करूँगा।।
तुम आषाढ़ कृष्ण पक्ष की योगिनी नाम की एकादशी का व्रत करो । इस व्रत के प्रभाव से निश्चय कुष्ठ छूट जाएगा । मुनि के इस वाक्य को सुनकर उसने पृथ्वी पर प्रणाम किया। मुनि ने उसे उठाया तब वह प्रसन्न हो गया ।मार्कण्डेय ऋषि के उपदेश से उसने यह उत्तम किया । इस व्रत के प्रभाव से वह देवरूप हो गया । स्त्री से उसका मिलाप हो गया और उत्तम सुख को प्राप्त किया ।
हे नृपश्रेष्ठ ! इस प्रकार योगिनी का व्रत मैंने तुमसे कहा ।
Yogini Ekadashi Vrat ka phal #
व्रत का फल - ---
अट्ठासी (88) हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो फल मिलता है , वह योगिनी एकादशी करने वाले को मिलता है । हे नृपश्रेष्ठ ! बड़े पापों को दूर करने वाली और बड़े पुण्यों के फल को देने वाली यह व्रत है।
इसके पढ़ने और सुनने से असंख्य पाप नष्ट होते हैं।
।। एकादशी कथा की जय।।
।।लक्ष्मीकांत की जय।।
यह कथा ब्रह्मवैवर्त पुराण से लिया गया है।
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