निर्जला एकादशी व्रत की कथा / इतिहास # Nirjala Ekadasshi vrat ki katha # ज्येष्ठ शुक्लपक्ष एकादशी की कथा
निर्जला एकादशी व्रत की कथा /इतिहास # Nirjala Ekadasshi vrat ki katha # ज्येष्ठ शुक्लपक्ष एकादशी की कथा
निर्जला एकादशी व्रत कथा # Nirjala Ekadashi katha # ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी कथा
निर्जला एकादशी व्रत की कथा /इतिहास # Nirjala Ekadasshi vrat ki katha # ज्येष्ठ शुक्लपक्ष एकादशी की कथा
नमस्कार मित्रो !
मैं नन्द किशोर आज आपके लिए अति प्राचीन कथा लेकर आया हूँ जो हमारे असंख्य जाने - अनजाने पापों को शीघ्र ही जलाकर राख करने में सक्षम है ।इसके श्रवण व व्रत करने से अनन्त काल के पापों का क्षय हो जाता है।
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी कथा / निर्जला एकादशी माहात्म्य
भीमसेन बोले -- हे महाबुद्धि पितामह ! मेरी बात सुनिये। युधिष्ठिर, कुन्ती , द्रौपदी , अर्जुन , नकुल , सहदेव ये सभी किसी एकादशी को भोजन नहीं करते और मुझसे भी कहते हैं तुम भी भोजन नहीं किया करो लेकिन मुझसे भूख सही नहीं जाती।सो हे पितामह मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए जो बिना उपवास किए एकादशी के व्रत का फल कैसे मिले ?
तब वेदव्यास जी बोले - जिनको स्वर्ग प्रिय है और नरक बुरा लगता है उसे दोनों पक्ष की एकादशी करनी चाहिए ।
भीमसेन बोले - जब मैं ढेर सारा अन्न खाता हूँ तभी मेरे पेट का वृक नामक अग्नि शांत होता है।
हे महामुने ! मैं एक उपवास कर सकता हूँ , जिससे मुझे स्वर्ग मिल जाए उस व्रत को विधिपूर्वक बताइए।
व्यास जी बोले - तुमने मानवधर्म और वैदिक धर्म सुने हो लेकिन कलियुग में उन धर्मों को करने की शक्ति मनुष्यों में नहीं है। सरल उपाय , थोड़े धन और कर्म परिश्रम से महाफल प्राप्त होने की विधि मैं तुमसे कहता हूँ जो सब पुराणों का सार है। वृष वा मिथुन के सूर्य में ज्येष्ठ शुक्लपक्ष की जो एकादशी है उसका यत्न पूर्वक निर्जल उपवास करना चाहिए।स्नान और आचमन में जल का निषेध नहीं है।माशे भर सुवर्ण का दाना जिसमें डूब जाए उतना ही जल आचमन के लिए कहा गया है।वही शरीर को पवित्र करने वाला है।गौ के कान की तरह हाथ करके मासे भर जल पीना चाहिए। उससे थोड़ा भी अधिक जल पीने से मदिरा पान के समान होता है और कुछ न खाय नहीं तो व्रत भंग हो जाता है।एकादशी के सूर्योदय से दूसरे दिन के सूर्योदय तक जल पान न करे। ऐसा करने से बारहों महीने के एकादशी का फल उसको मिल जाता है फिर द्वादशी को सबेरे निर्मल जल में स्नान करके ब्राह्मणों के लिए जल और सुवर्ण का दान करे फिर व्रत करने वाला कृत कृत्य होकर ब्राह्मणों सहित भोजन करे।
इस प्रकार व्रत करने से जो पुण्य होता है उसको सुनो।।
निर्जला एकादशी व्रत की कथा , इतिहास # Nirjala Ekadasshi vrat ki katha
साल भर में जितनी एकादशी होती है उनका फल इस एक एकादशी के करने से मिल जाता है इसमें संदेह नहीं।वह सब पापों से छूट जाता है।साल भर के एकादशी के करने से धन - धान्य, बल , आयु, पुत्र , आरोग्यता मिलती है , वे सभी फल इसके करने से मिल जाते हैं। इसके करने से उसके पास यमदूत नहीं आते हैं बल्कि उसके पास पीताम्बर धारी भगवान विष्णु के दूत उसके पास आते हैं और उनको अंत समय में विष्णु लोक ले जाते हैं।उसी दिन से भीमसेन द्वारा किए जाने पर निर्जला एकादशी व्रत को किया तभी इसका नाम भीमसेनी विख्यात हो गया।
' हे देवेश ! हे अनन्त ! मैं आज आपका निर्जल व्रत करूँगा और दूसरे दिन भोजन करूँगा। ' इस मंत्र को पढ़कर सब पापों को दूर करने के लिए इन्द्रियों को वश में करके श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करे। स्त्री या पुरुष के सभी प्रकार के पाप इस एकादशी के प्रभाव से भस्म हो जाते हैं।जल दान और गोदान न कर सके तो कलश में वस्त्र लपेट कर सुवर्ण का दान करे।जो जल दान का नियम करता है उसको एक प्रहर में करोड़ पल सुवर्ण दान का फल मिलता है।इस दिन जो कुछ भी स्नान, दान , जप, होम आदि करता है वह अक्षय हो जाता है --ऐसा श्रीकृष्ण जी ने कहा है।एकादशी के दिन जो अन्न खाता है वह पापी होता है। इस लोक में वह चांडाल और मरने के बाद बुरी गति पाता है। निर्जला व्रत करने वाले ब्रह्महत्या , मदिरापानी , चोरी , गुरु से बैर, मिथ्या भाषण आदि पापों से छूट जाते हैं।इस दिन जलशायी भगवान का पूजन करे , गोदान करे या घृत धेनु का दान करे ।अनेक प्रकार के मिष्ठान्न और दक्षिणा देकर ब्राह्मणों को प्रसन्न करे। ब्राह्मणों के प्रसन्न होने से मोक्ष देने वाले हरि भी प्रसन्न हो जाते हैं। जिसने इस व्रत को नहीं किया वह अपनी आत्मा से द्रोह करने वाला है।जिसने इस व्रत को किया उसने अपने समेत सौ पीढ़ी को विष्णु लोक को भेज दिया। जो उपवास करके रात्रि में जागरण करते हैं और निर्जला के दिन अन्न ,जल , गौ, वस्त्र , शय्या, आसन, कमंडल ,छत्र, पादत्राण इनका सुपात्र को दान देते हैं , वे सोने के विमानों में बैठकर स्वर्ग को जाते हैं ,जो इस कथा को भक्ति सहित सुनने से दोनों निःसंदेह स्वर्ग को जाते हैं। जो सूर्यग्रहण में श्राद्ध करने से जो फल मिलता है वही इसके सुनने वालों को भी मिलता है।
#Nirjala Ekadashi vrat katha#
दातुन करके इसका नियम करे -- ' मैं केशव भगवान् को प्रसन्न करने के लिए आचमन के सिवा एकादशी के व्रत में दूसरा जल ग्रहण नहीं करूँगा। ' इस प्रकार नियम करना चाहिए। द्वादशी के दिन गन्ध, पुष्प ,जल और दीपक से देवताओं के ईश्वर वामनजी का पूजन करना चाहिए। विधि पूर्वक पूजन करके इस मंत्र का उच्चारण करे -- " हे देवताओं के ईश्वर ! हे इन्द्रियों के ईश्वर ! हे संसार समुद्र के पार करने वाले ! जल से भरे हुए कलश के दान करने से मुझ को परम गति दीजिए । ऐसा कह कर ब्राह्मणों के लिए शक्ति के अनुसार कलश देने चाहिए । हे भीमसेन ! अन्न , वस्त्र , छत्र , उपानह , फल युक्त कलश देने चाहिए और भी दान देने चाहिए। जल और गौ का दान अवश्य करे फिर ब्राह्मणों को भोजन कराकर मौन से स्वयं भी भोजन करे। इस प्रकार जो पवित्र और पापों को दूर करने वाली एकादशी का व्रत करता है , वह पापों से छूटकर परम पद को प्राप्त करता है।।
।। इति श्रीब्रह्मवैवर्त्तपुराणे ज्येष्ठशुक्लनिर्जलैएकादशीव्रतमाहात्म्यं सम्पूर्णम् ।।
##ॐ नमो नारायणाय##
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ॐ .. आपसे आग्रह है इस पावन कथा को दूसरों को अवश्य शेयर कर पुण्य का भागीदार बनें।।
" जय श्री राम "
#नन्द किशोर सिंह#