रत्न,आभूषण,हीरे-जवाहरात विष है कैसे ?
रत्न,आभूषण ,हीरे-जवाहरात विष है कैसे ?
नमस्कार बंधुओ,
मैं नन्द किशोर राजपूत आज आपके लिए एक शिक्षाप्रद कहानी लेकर आया हूँ । जिसमें बताया गया है कि धन - संपत्ति मनुष्य के मनो - मस्तिष्क को किस प्रकार बदल देता है और वह अपने हितैषी की भी बातें नहीं समझते ।
उम्मीद से ज्यादा लोग हमारे ब्लाॅग को पढ़कर लाभ उठा रहे हैं , इसलिए आपसे मेरा आग्रह है कि आप मुझे कृपया follow भी करें ।
https://youtu.be/GqswiKHp2p8
एक बार महात्मा बुद्ध एक जंगल से होकर गुजर रहे थे तभी उन्होंने देखा एक सुनसान जगह पर एक आदमी जमीन खोद रहा था । देखते ही देखते उसने फावड़ा (कुदाल) एक ओर रख दिया और भूमि में दबा घड़ा बाहर निकाला । मिट्टी साफ करने के बाद उसने जब घड़े का ढक्कन खोला तो खुशी से उछल पड़ा।
घड़े में बहुमूल्य रत्न भरे थे । उसका मुखमंडल आनंद से चमकने लगा और उसने महात्मा बुद्ध से कहा -" आपके उपस्थिति में मुझे यह धन प्राप्त हुआ है ।अतः मैं यह धन आपके साथ बाँटना चाहता हूँ ।"
बुद्ध ने कुछ भी लेने से मना कर दिया । जब शिष्यों ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा - " यह घड़ा विष को छोड़कर और कुछ नहीं है।"
" क्या ?" शिष्य ने आश्चर्य से पूछा और घड़े में झांककर देखा तो वह ऊपर तक रत्नों से भरा था । उसने कहा , " इसमें तो रत्न है , विष नहीं ।"
" मैं जानता हूँ इसलिए मैंने कहा है कि इसमें विष को छोड़कर कुछ भी नहीं है।"
शिष्य समझ नहीं पाया कि महात्मा के कहने का तात्पर्य क्या है ।
वह आदमी इनकी बातों को सुन रहा था और अचानक बीच में ही बोल पड़ा -- रहने दो विष को मेरे पास , आपलोगों को नहीं लेना है तो कोई बात नहीं और वह घड़ा लेकर चल दिया। महात्मा भी अपने रास्ते चले गए।
वह आदमी बहुत धनवान बन गया और धन - वैभव के साथ आनंद से रहने लगा। उसका पड़ोसी उसके धन - दौलत से जलने लगा और उसने राजा से शिकायत कर दिया कि मेरे पड़ोसी को जमीन में गड़ा हुआ खजाना मिला है जिसकी वजह से वह धनवान बन गया है ।
राजा ने उसे तुरंत बुलवाया और उसके धन - संपत्ति के बारे में पूछताछ किया । उस आदमी ने सब कुछ सत्य - सत्य बता दिया।
राजा ने क्रोधित होकर कहा - " तुम सबसे पहले वह घड़ा मेरे पास लेकर आते , यह तुम्हारा कर्तव्य था लेकिन तुमने गलती की है फिर भी जाओ वह सारा धन मेरे पास ले आओ।"
उस व्यक्ति ने सफाई देते हुए कहा - " महाराज ! सारा रत्न बेचकर मैंने ढेर सारी सम्पत्ति खरीद ली , अब आपको क्या लाकर दूँ ।"
राजा को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया और अपने सैनिकों को आदेश दिया कि शीघ्र ही इसकी सारी सम्पत्ति व परिवारजनों के साथ इसे बंदीगृह में डाल दो ।
उस आदमी को महात्मा बुद्ध के शब्द याद आ गये और पश्चाताप करने लगा ।
राजा प्रत्येक वर्ष बंदी गृह का निरीक्षण करने और बंदियों से मिलने जाते थे । बंदीगृह में राजा उस आदमी से भी मिला। राजा को उसने महात्मा बुद्ध वाली सारी बात बता दी और प्रार्थना किया कि एक बार मुझे महात्मा बुद्ध से मिलवाने का कष्ट करें । मैं अपना प्रायश्चित करना चाहता हूँ क्योंकि मैंने उनकी बात नहीं मानी है जिसका दुष्परिणाम मेरे वृद्ध माता - पिता , पत्नी , संतान सबको भुगतना पड़ रहा है।
उसकी कहानी सुनने के बाद राजा ने कहा - " बुद्ध अवश्य दूरदर्शी व्यक्ति है , मुझे भी उनसे मिलना चाहिए ।" उन्होंने दूत भेजकर बुद्ध को अपने राज्य में आने निमंत्रण भिजवाया ।
जब महात्मा आये तो सभी ने उनका दर्शन किये । बंदीगृह में उस व्यक्ति से भी मिलवाया गया ।बुद्ध ने उसे पहचान कर कुशल क्षेम पूछा तो वे उनके चरणों पर गिर गया और क्षमा याचना करने लगे।
बुद्ध ने राजा से कहकर बंदीगृह से छुटकारा दिलवा दिया। इसके बाद वह सानंद रहने लगा।
हमारा अन्य पोस्ट पढ़ने के लिए नीचे लिंक को क्लिक करें --
https://youtu.be/GqswiKHp2p8