अजा एकादशी व्रत कथा -- Aja Ekadashi Vrat Katha/भाद्रपद कृष्णपक्ष की एकादशी कथा

अजा एकादशी व्रत कथा -- Aja Ekadashi Vrat Katha/भाद्रपद कृष्णपक्ष की एकादशी कथा





नमस्कार दोस्तो ,
                     मैं नन्द किशोर सिंह आज आपके लिए महापुण्यदायिनी भाद्रपद कृष्णपक्ष की एकादशी कथा लेकर आया हूँ । इस पापनाशिनी कथा को भगवान श्रीकृष्ण जी ने युधिष्ठिर से कहा है जो ब्रह्मवैवर्त पुराण से लिया गया है ।


अजा एकादशी व्रत कथा -- Aja Ekadashi Vrat Katha/भाद्रपद कृष्णपक्ष की एकादशी कथा


भाद्रपद कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम अजा है जो सभी पापों को   दूर करने वाली है ।
इससे बढ़कर कोई भी हितकारी व्रत नहीं है। 


सत्यवादी हरिश्चन्द्र की कथा 

   

प्राचीन समय में सब पृथ्वी का स्वामी चक्रवर्ती  हरिश्चन्द्र नाम का सत्यवादी राजा हुआ । वह किसी कर्म के वश राज्य से भ्रष्ट हो गया। उसने अपनी स्त्री पुत्र  और अपने शरीर को भी बेच दिया ।


हे राजन् ! वह धर्मात्मा राजा  चांडाल ( डोम )   के यहाँ नौकर हो गया परंतु उन्होंने सत्य नहीं छोड़ा । स्वामी की आज्ञा से वह कर ( टेक्स) के रूप में मुर्दे का वस्त्र लेने लगा । वह राजा सत्य पर अडिग रहा । 


इस तरह से राजा के बहुत से वर्ष बीत गये । राजा बहुत चिंतित रहने लगे कि क्या करूँ और कहाँ जाऊँ , मेरा उद्धार कैसे हो ? 


अजा एकादशी व्रत कथा


इस प्रकार शोक सागर में डूबे हुए , चिंता युक्त , दुःखी राजा के पास गौतम नाम के एक मुनिश्वर आये ।

ब्रह्माजी ने परोपकार के लिए ही ब्राह्मण को रचा है । मुनिश्रेष्ठ को देखकर राजा ने प्रणाम किया । हाथ जोड़कर राजा गौतम ऋषि के सामने खड़ा  हो गया  और अपने दुःख का वृतान्त कह  सुनाया । 

राजा का वचन सुनकर गौतम ऋषि  को विस्मय हुआ । मुनिश्वर ने राजा को कहा --

 " भादों के कृष्णपक्ष में पुण्य देने वाली अजा नाम की एकादशी आने वाली है । उसका तुम व्रत करो इससे पाप नष्ट हो जाएगा । तुम्हारे भाग्य से वह आज से सातवें दिन होगी । उपवास करके रात में जागरण करना । इस प्रकार उसका व्रत करने से पाप दूर हो जाएगा । हे नृपोत्तम ! तुम्हारे भाग्य से मैं आ गया हूँ । " इस  तरह राजा से कहकर मुनिश्वर अंतरध्यान हो गये ।।


अजा एकादशी का माहात्म्य


हे राजशार्दूल ! इस व्रत का प्रभाव सुनो । जो कष्ट बहुत वर्षों तक भोगने योग्य हो वह शीघ्र नष्ट हो जाता है । इस व्रत के प्रभाव से राजा का दुःख दूर हो गया । स्त्री मिल गई और मेरा हुआ पुत्र जीवित हो गया ।

देवताओं ने नगाडे बजाये , आकाश से फूलों की वर्षा हुई । एकादशी के प्रभाव  से राजा ने निष्कंटक राज्य किया । सब पुरवासियों और कुटुम्बियों समेत राजा स्वर्ग को गये ।

हे राजन् ! इस प्रकार के व्रत को जो द्विजोत्तम करते हैं , वे निश्चय सब पापों से छूटकर स्वर्ग को जाते हैं ।

इसके पाठ करने और सुनने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है ।


  --------  श्री एकादशी माहात्म्य की जय ------
   ॐ नमो नारायणाय ।।।।।
  रमापति की जय ।।।।

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