पुत्रदा एकादशी व्रत कथा/श्रावण शुक्लपक्ष एकादशी

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा/श्रावण शुक्लपक्ष एकादशी व्रत कथा/Putrada mahatmya




।।श्री गणेशाये नमः।।
भगवान विष्णु का अष्टाक्षर मंत्र
" ॐ नमो नारायणाय "

            आज मैं उस एकादशी का वर्णन करने जा रहा हूँ जिसके करने से समस्त कामनाएँ पूर्ण होती है , विष्णुभक्त पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है तथा जिस कथा के श्रवण मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस कथा को भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों का सुनाया है।


पुत्रदा एकादशी व्रत कथा/श्रावण शुक्लपक्ष एकादशी व्रत कथा/Putrada mahatmya



         प्राचीन समय में द्वापर युग के प्रारंभ में माहिष्म पुरी में  महीजित नाम का राजा राज्य करता था । उसको पुत्र नहीं था इसलिए उसको राज्य में सुख नहीं मिलता था । बिना पुत्र के इस लोक और परलोक में सुख नहीं है । पुत्र प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार के यत्न किए लेकिन पुत्ररत्न की प्राप्ति नहीं हुई । धीरे - धीरे राजा वृद्धावस्था को प्राप्त हुआ और बहुत चिंतित रहने लगा । 


            एक दिन  राजा ने सभा में बैठकर सभी प्रजाजनों से कहा -- मैंने कभी भी मैंने गलत तरीके से धन अर्जित नहीं किया । दुष्टता करने पर भ्राता और पुत्र के समान मनुष्यों को भी मैंने दण्ड दिया । ब्राह्मणों और देवताओं का मैंने कभी धन नहीं लिया । शत्रु यदि सज्जन हैं तो उनका भी मैंने पूजन किया । 

         हे उत्तम ब्राह्मणो ! इस तरह धर्म के रास्ते पर चलने पर भी मुझे पुत्र नहीं हुआ कृपया आपलोगों विचार कीजिए । राजा की इस प्रकार की बातें सुनकर राजा के हित का विचार करके सभी लोग सघन वन में गये। इधर उधर ऋषियों के आश्रमों को देखने लगे । 


                 राजा के हितैषी मनुष्यों ने घोर तप करते हुए चैतन्य आनन्दमय , आरोग्य , आहार रहित , मन को वश में करने वाले , क्रोध रहित , धर्म तत्व के ज्ञाता , सब शास्त्रों में चतुर लोमश ऋषि को देखा । जो अनेक ब्रह्माओं के समान दीर्घायु वाले थे । एक कल्प ( 284 युग ) बीतने पर जिनका एक रोम ( रोयाँ ) टूटता है ।ऐसे त्रिकाल को जानने वाले इन मुनि का नाम लोमश पड़ा। उनको देखकर सभी प्रसन्न हुए और उनके पास गये। सभी ने उनको नमस्कार किये । 

           सभी को देखकर मुनिश्वर बोले -- तुमलोग यहाँ क्यों आये हो कारण सहित बताओ ?  तब सभी लोग स्तुति करके बोले -- आप ब्रह्मा के समान जान पड़ते हैं । आप दयालू हैं । हमारे ये महाराज महीजित हैं , ये धर्मात्मा होते हुए भी पुत्रहीन हैं । कृपया , आप कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे इनके पुत्र हो जाए । 

मुनिश्रेष्ठ ने थोड़ी देर ध्यान लगाकर देखा ।

राजा महीजित के पूर्व जन्म की कथा 

मुनिश्वर बोले -- पहले जन्म में यह राजा निर्धन और क्रूरता के कर्म करने वाला वैश्य था । एक गाँव से दूसरे गाँव जाकर व्यापार करता था । एक दिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में द्वादशी के दिन दोपहर के समय गाँव की सीमा पर प्यास से व्याकुल हो गया । 

वहाँ सुन्दर जलाशय को देखकर जल पीने का विचार किया । वहाँ हाल में बच्चा दी हुई गौ  बछडे समेत जल पीने आई । वह प्यास और धूप से व्याकुल थी । वह उसका जल पीने लगी । उस  वैश्य ने जल पीती हुई गौ को हटाकर स्वयं जल पिया । उसी पाप से राजा पुत्रहीन हुआ ।


पुत्रदा एकादशी व्रत कथा/श्रावण शुक्लपक्ष एकादशी व्रत कथा/Putrada mahatmya


पहिले जन्म के किए हुए पुण्य से निष्कंटक राज्य मिला । वे मनुष्य बोले -- हे मुने !  पुराणों में सुना जाता है   कि पुण्य के प्रभाव से पाप दूर हो जाता है  इसलिए पुण्य का उपदेश दीजिए जिससे पाप का नाश हो और आपकी कृपा से इनके पुत्र हो ।  

लोमश ऋषि बोले --  श्रावण शुक्लपक्ष में पुत्रदा नाम की एकादशी होती है , उसका व्रत न्याय और विधिपूर्वक करो । रात्रि में जागरण करो । उसका निर्मल पुण्य राजा को दो । ऐसा करने से निश्चय राजा के पुत्र होगा । 
     
           लोमश ऋषि को प्रणाम करके प्रसन्न होकर सब अपने - अपने घर चले गए । श्रावण आने पर लोमश की बात याद करके सब लोगों ने राजा सहित सभी ने  श्रद्धापूर्वक व्रत किया । 

द्वादशी के दिन अपना पुण्य राजा को दिया । पुण्य के देते ही रानी ने सुन्दर गर्भ धारण किया और प्रसव का समय आने पर सुन्दर पुत्र उत्पन्न किया ।  हे नृपश्रेष्ठ ! इस प्रकार यह पुत्रदा नाम की एकादशी प्रसिद्ध है । 

        इस लोक और परलोक का सुख चाहने वालों को इसका व्रत करना चाहिए । इस कथा के श्रवण से वाजपेयी यज्ञ का फल मिलता है। इसका माहात्म्य सुनकर मनुष्य सब पापों से छूट जाता है । यहाँ पुत्र का सुख पाकर अन्त में स्वर्ग को जाता है ।

       ।। श्री एकादशी माहात्म्य की जय।।
       ।। श्री लक्ष्मीनारायण  की जय।।

____ यह भविष्यपुराण से लिया गया है।________


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