Papankusha | पापांकुशा एकादशी | आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत कथा व माहात्म्य

Papankusha | पापांकुशा एकादशी | आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत कथा व माहात्म्य


श्री गणेशाये नमः।।
श्री गुरुवे नमः।।
            
           मैं नन्द किशोर सिंह आज आपके समक्ष आश्विन शुक्ल पक्ष की पापांकुशा एकादशी का वर्णन करने जा रहा हूँ , जो ब्रह्मवैवर्तपुराण से लिया गया है और भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर को सुनाया है।  
           
                जो लोग एकादशी व्रत करते हैं वो तो पुण्यत्मा हैं ही लेकिन बहुत सारे लोग व्रत नहीं कर सकते हैं वे इस कथा का श्रवण या अध्ययन जरूर करें क्योंकि ऐसा करने से उनके असंख्य पाप मिट जाते हैं।


महत्वपूर्ण बात


जो लोग उपवास नहीं रख सकते वो लोग रोटी के साथ नमक छोड़कर मीठा भोजन कर सकते हैं ऐसा करने से एकादशी व्रत का एक चौथाई फल मिल जाता है।


श्री गौरीपतये नमः।।


Papankusha | पापांकुशा एकादशी | आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत कथा व माहात्म्य


         
               भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा -  आश्विन मास के शुक्लपक्ष में पापांकुशा एकादशी होती है ।इसमें मनुष्य को पद्मनाभ भगवान का पूजन करना चाहिए । 


यह एकादशी सभी मनोरथ और मोक्ष देने वाली है।


जो मनुष्य इंद्रियों को वश में करके बहुत समय तक तपस्या करता है।उसका फल गरूडध्वज भगवान को नमस्कार करने से मिलता है। 



अज्ञान से बहुत पाप करके भी मनुष्य पापनाशक भगवान को नमस्कार करके घोर नरक को नहीं जाते। पृथ्वी पर जितने तीर्थ और पवित्र स्थान हैं उनका फल भगवान के नाम के कीर्तन से मिल जाता है । 

       

       जो शार्ड़्ग -- धनुषधारी , जनार्दन की शरण को प्राप्त हो गये हैं । वे मनुष्य कभी यमलोक को नहीं जाते। जो मनुष्य प्रसंगवश  एक भी एकादशी का व्रत कर लेता है।  वह कठिन पाप करके भी यमलोक को नहीं जाता।



जो वैष्णव होकर शिवजी की और शैव होकर विष्णु की निंदा करता है । जो हजारों अश्वमेध और सैकड़ों राजसूययज्ञ करने से फल होता है। वह फल एकादशी के सोलहवें भाग के भी बराबर नहीं है। 



संसार में एकादशी के समान कोई पुण्य नहीं है । इसके समान पवित्र तीनों लोकों में कुछ नहीं है। जैसा कि पद्मनाभ की एकादशी का दिन पापों को दूर करने वाला है । 


हे मनुजाधिप !  जब तक मनुष्य पद्मनाभ की एकादशी का उपवास नहीं करता तब तक उसके शरीर में पाप रहते हैं । एकादशी के समान तीनों लोकों में कुछ नहीं है।


हे राजन् ! किसी बहाने से भी जिसने एकादशी कर ली हो तो वह यमराज को नहीं देखता । वह एकादशी स्वर्ग , मोक्ष , आरोग्य , सुन्दर स्त्री और अन्न-धन को देने वाली है।


हे भूपते ! एकादशी के समान पवित्रगंगा , गया , काशी , पुष्कर और कुरूक्षेत्र आदि तीर्थ भी नहीं हैं। 


हे नृपश्रेष्ठ ! एकादशी का उपवास करके रात्रि में जागरण करके बिना परिश्रम विष्णु पद को प्राप्त हो जाता है । 



Papankusha | पापांकुशा एकादशी | आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत कथा व माहात्म्य



हे राजेंद्र ! इसका उपवास करने से मनुष्य दस पीढ़ी माता की , दस पीढ़ी पिता के कुल की , दस पीढ़ी स्त्री के कुल की उद्धार कर देता है । 


वे मनुष्य दिव्य शरीर और चार भुजा धारण करके माला और पीताम्बर पहनकर गरूड पर बैठकर स्वर्ग को जाते हैं।


हे नृपोत्तम ! बालकपन, बुढ़ापा या युवावस्था में इसका व्रत करके पापी आदमी भी दुर्गति को प्राप्त नहीं होता। 


आश्विन शुक्लपक्ष में पापांकुशा का उपवास करके मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है। जो मनुष्य सुवर्ण , तिल , भूमि , गौ , अन्न , जल , छाता , जूता , वस्त्र इनका दान करता है वह यमराज को नहीं देखता।
       
            
जिसके दिन बिना पुण्य के बीत गये वह लुहार की धौकनी की तरह जीता हुआ भी मरे के तुल्य है। 
हे नृपोत्तम ! गरीब मनुष्य को भी शक्ति के अनुसार स्नान , दान आदि क्रिया करके सदाचार से रहकर अपना समय व्यतीत करना चाहिए। 


तालाब,मंदिर बनवाने वाले , बगीचे लगाने वाले , यज्ञ आदि शुभ कर्म करने वाले धीर पुरुष यमलोक के दुःख को नहीं देखते। ऐसे पुण्य करने वाले संसार में दीर्घायु , धनाढ्य , कुलीन और निरोगी होते हैं।


।।श्री पापांकुशा एकादशी माहात्म्य की जय।।

।।श्री रमापति की जय।।

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