जो डर गया- वो मर गया | Jo dar gaya- wo mar gaya

जो मर गया-वो डर गया | Jo mar gaya-wo dar gaya


                     मैं नन्द किशोर सिंह आज आपके लिए एक महत्वपूर्ण लेख लेकर आया हूँ , जिसका शीर्षक ' जो डर गया-वो मर गया | Jo dar gaya- wo mar gaya ' है ।
             
                       इस कहानी में स्वामी विवेकानंद के बचपन के एक कड़ी के ऊपर प्रकाश डाला गया है जो हमारे जीवन को सही दिशा में ले जाने के लिए उपयोगी हो सकता है। यह लेख काशी नगरी से जुड़ी हुई है तो चलिए एक बार काशी नगरी को थोड़ा समझ लिया जाए।
             
          
काशी एक ऐतिहासिक नगरी



काशी नगरी आज से नहीं बल्कि प्राचीन समय से ही एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है , जिसका नाम बनारस , वाराणसी भी है । यह नगरी भगवान शिवजी के त्रिशूल पर बसा हुआ है । यहाँ मरने वाले जीवों के कान में शिवजी स्वयं राम नाम का उच्चारण करते हैं जिससे उस जीव को बिना परिश्रम के ही वह जन्म -- मरण के चक्कर से छूटकर परमधाम का अधिकारी होकर मोक्ष प्राप्त करता है । 


                     प्राकृतिक व भौगोलिक दृष्टि से भी इस नगरी का विशेष महत्व है।यह नगरी गंगाजी के तट पर बसा हुआ है । यहाँ भगवान शिवजी का भव्य मंदिर है जो बाबा काशी विश्वनाथ धाम से प्रसिद्ध है।इस नगरी का मानव ही नहीं , देवता भी यशोगान करते हैं। रात्रि के समय जब इस नगरी से होकर रेलगाड़ी गुजरती है तो इसकी शोभा देखते ही बनती है ।

तो चलिए कहानी के तरफ ....


जो डर गया, वो मर गया | Jo dar gaya, wo mar gaya


     

  उस बालक का नाम नरेंद्र था ।
       
       एक दिन  वह काशी विश्वनाथ मंदिर के परिसर में खेल रहा था । तभी वहाँ बंदरों का झुंड आया । उस झुंड में छोटे - बड़े सभी तरह के बंदर थे ।


       बालक नरेंद्र के पास थोड़े - से चने थे । उन चने को दिखाकर उसने बंदर के बच्चे को अपने पास बुला लिया । बंदर के बच्चे को खाते देखकर बालक नरेंद्र उससे खेलने लगा  लेकिन जैसे ही बालक ने उसे पकड़ा कि वह चीं  ... चीं चिल्लाने लगा । 



      उसकी आवाज सुनकर बंदर का सरदार वहाँ आ गया । उस बच्चे की रक्षा के लिए वह दौड़ा । वह सरदार लंबा - चौड़ा  और भयानक था ।  आगे - आगे नरेंद्र और पीछे - पीछे सरदार भाग रहा था । बालक ने बंदर के बच्चे को नहीं छोड़ा और  वह मंदिर के अंदर जा छिपा लेकिन सरदार वहाँ भी पहुँच गया ।नरेंद्र मंदिर से बाहर निकलकर बड़ी तेजी से भागा 


 जो डर गया, वो मर गया | Jo dar gaya, wo mar gaya


भागते क्रम में बंदर का बच्चा हाथ से छूटकर भाग निकला  लेकिन बंदरों का सरदार अब भी पीछा नरेंद्र का कर रहा था क्योंकि उसने बच्चे को  छूटकर गिरते नहीं देखा था ।




नरेंद्र किसी प्रकार भागते - छिपते गंगा किनारे पहुँच गया और पानी में कूद गया । अब वह  सरदार क्या करता लेकिन छिपकर बालक नरेंद्र को वह देख रहा था । वह जैसे ही पानी  से बाहर निकला वह वैसे ही दाँत किटकिटाता हुआ उसपर दौड़ा । 



नरेंद्र ने तुरंत निर्णय लिया ----  " जो डर गया, वो मर गया | Jo dar gaya, wo mar gaya " ..   उसने नाव में पड़ा मोटा डंडा हाथ में उठा लिया । वह पूरा ताकत लगाकर सरदार को मारने ही वाला था कि वह डरकर भाग दूर खड़ा हो गया । 

नरेंद्र कौन था ? 

यही साहसी बालक बड़ा होकर स्वामी विवेकानंद के नाम से मसहूर हुआ और अपने ज्ञान से पूरे विश्व को प्रकाशित कर दिया । 

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